परम पूज्य ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु श्री आनंदनाथजी महाराज, एक सनातनी सन्यासी और ब्रह्मज्ञानी गुरु है जो हज़ारो लोगो को भक्ति, ज्ञान और योग के माध्यम से ब्रह्मज्ञान से परिचित करवा कर उनका जीवन आसान बना रहे है।

इनका का जन्म ईसा 1976, विक्रम संवत 2032, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को गुजरात के मेहसाणा जिले के पधरिया गाँव में जसवंतसिंहजी और नंदू बा के यहाँ एक क्षत्रिय वंश में हुआ था।

आनंदनाथजी सार्वजनिक प्रवचन भी करते हैं जो कि लक्ष्य टीवी, संस्कार टीवी जैसे कई टीवी चैनलों पर प्रसारित होते रहते हैं। अपने अनुयायियों के बीच, वे 'बापजी' नाम से प्रसिद्ध है।

उनकी मां नंदूबा ने उन्हें बचपन से ही भक्ति के गुण सिखाए थे। बहुत छोटी उम्र से ही वह संतों के साथ जाते थे और उनके साथ आध्यात्मिकता और दिव्यता पर विभिन्न विषयों पर चर्चा करते थे। मात्र 7 वर्ष की अल्पायु में ही विभिन्न धार्मिक पुस्तकें पढ़कर अक्सर उन्हें यह अहसास होता कि वे पहले भी इन सभी पवित्र पुस्तकों का अध्ययन कर चुके हैं।

और मात्र 10 साल की उम्र में ही आनंदनाथजी को गीता, श्रीमद्भागवत, रामचरितमानस, महाभारत, वेद और उपनिषदों में असाधारण समझ थ। फिर उन्होंने बहुत ही कम समय में विभिन्न साधनाएँ की और उनका अभ्यास किया।

इतनी कम उम्र में इस प्रकार की असाधारण समझ पूर्वजन्म के अधूरे लक्ष्य या भगवान की विशेष कृपा से ही संभव हो सकती थी। 28 वर्ष की आयु में कठिन साधना और ईश्वर प्राप्ति की प्रबल इच्छा के परिणामस्वरूप परमात्म तत्व का अनुभव प्राप्त हुआ।

फिर थोड़े समय की अवधि तक गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों को पूरा करने के बाद उन्होंने पूज्य गुरु श्री शंकरनाथजी महाराज से दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा प्राप्त करने के बाद, उन्होंने समाज के कल्याण के उद्देश्य से अपने प्रवचनों के माध्यम से विभिन्न स्थानों पर सत्संग के अमृत को जनहित में बांटना आरम्भ कर दिया।

पूज्य आनंदनाथजी आध्यात्मिक मार्ग के गूढ़, जटिल एवं सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों को अत्यंत सरल प्रक्रिया से लोगो को समझाते हैं, ताकि सामान्य व्यक्ति भी उस ज्ञान को आत्मसात कर शके। इसी उद्देश्य से श्री गुरूजी ने महत्वपूर्ण आध्यात्मिक विषयों पर कई पुस्तकें भी लिखी और कई भजनो की रचना भी की हैं।

आनंदनाथजी गुरूजी के सबसे आकर्षक बात यह है की वे किसी भी धर्म या व्यक्ति विशेष की आलोचना न करने, सभी धर्मों के साथ सद्भाव रखने, किसी भी मत, तर्क, पंथ आदि पर जोर न देकर उनके साथ समान व्यवहार करने में विश्वास रखते हैं।

उनके सत्संग / प्रवचन में अनुभव की सुगंध होती है, जो श्रोताजनों के ह्रदय में अप्रतिम छबि बना देती हैं की लोग उन्हें सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते है।

आनंदनाथजी को लगभग ४० साल की अल्पायु में धार्मिक ग्रंथो एवं आध्यात्मिक साधना का उत्कृष्ट ज्ञान और अनुभव है। भगवान ने उन्हें गौरवशाली चरित्र, प्रभावशाली व्यक्तित्व, आकर्षक वक्तृत्व और संगीत पर पकड़ का उपहार देकर इस धरती को पावन किया है।

संत श्री आनंदमूर्तिजी महाराज के बारे में संक्षिप्त में वर्णन करना कठिन है, लेकिन फिर भी इस महान ब्रह्मज्ञानी संत और असाधारण गुरु से लोग परिचित हो सकें और परम लक्ष्य की ओर बढ़ सकें इसी उद्देश्य से यह वाक्य पुष्प आप सभी वाचको के अंतःकरण में विराजमान परमात्मा को अर्पण कर विषय को विराम करते है।

।। जय गुरुदेव ।।

।। आदेश ।।