बाड़मेर राजस्थान में स्थित एक छोटा किंतु रंगों से भरपूर शहर है। यह बाड़मेर जिला मुख्यालय है। इस शहर की स्थापना बहाड़ राव ने 13वीं शताब्दी में की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम बाड़मेर पड़ा यानि बार का पहाड़ी किला। एक समय मालानी के नाम से जाना जाने वाला बाड़मेर अपनी जीवंतता के कारण सैलानियों को बहुत भाता है। बाड़मेर की यात्रा की एक खासियत यह भी है कि यह हमें राजस्थान के ग्रामीण जीवन से रूबरू कराता है। यात्रा के दौरान रास्ते में पड़ने वाले गांव, पारंपरिक पोशाकें पहने लोगों और रेत पर पड़ती सुनहरी धूप, बाड़मेर की यह मनोरम छवि आंखों में बस जाती है। मार्च के महीने में पूरा बाड़मेर रंगों से भर जाता है क्योंकि वह वक्त बाड़मेर महोत्सव का होता है। यह वक्त यहां आने का सबसे सही समय है।

जसोल एक समय में जसोल मालानी का प्रमुख क्षेत्र था। रावल मल्लीनाथ के नाम पर परगने का नाम मालानी पङा, इस प्राचीन गांव का नाम राठौड़ उपवंश के वंशजों के नाम पर पड़ा। यहां पर स्थित जैन मंदिर और हिंदु मंदिर जसोल के मुख्य आकर्षण हैं। यहां एक चमत्कारिक देवी माता रानी भटीयाणी का मन्दिर है

जूना बाड़मेर पहाड़ी पर स्थित इस नगर में एक पुराने किले के खंडहर देखे जा सकते हैं। यहां के अन्य प्रमुख आकर्षणों में बलार्क (सूर्य) को समर्पित मंदिर और जूना बाड़मेर के अवशेष शामिल हैं। तीन जैन मंदिर, 1295 ई. का शिलालेख और महाराजा कुल श्री सामंत सिन्हा देव के सबसे बड़े मंदिर में लगे विशाल स्तंभ भी देखने लायक हैं।

शिव यह राष्टीय राजमार्ग १५ पर आया हुआ है यहा एक पुराना शिव मन्दिर है परमार वन्श ने इसकी स्थापना की थी

हरसाणी यह बाडमेर-गिराब और शिव-गडरारोड सडक के मिलन स्थल पर एक चोराहे पर आया हुआ है यहा एक माल्हण बाई का चमत्कारिक मन्दिर है।

खेड़ राठौड़ वंश के संस्थापक राव सिहा और उनके पुत्र ने खेड़ को गुहिल राजपूतों से जीता और यहां राठौड़ों का गढ़ बनाया। रणछओड़जी का विष्णु मंदिर यहां का प्रमुख आकर्षण है। मंदिर के चारों और दीवार बनी है और द्वार पर गुरुड़ की प्रतिमा लगी है जिसे देख कर लगता है मानो वे मंदिर की रक्षा कर रहे हों। पास ही ब्रह्मा, भैरव, महादेव और जैन मंदिर भी हैं। जो सैलानियो क मुख्य आकर्स्न का केन्द्र है। गुहिल राजपूत यहा से भावनगर चले गये और १९४७ तक शासन किया ।

किराडु पहाड़ी की तराई में हाथमा गांव के पास स्थित है किराडु। 1161 ई. के शिलालेख से पता चलता है कि पहले इस स्थान का नाम कीरतकूप था। एक समय में यह परमार राजपूतों की राजधानी था। यहां पर पांच मंदिरों के अवशेष मिले हैं जिनमें से एक भगवान विष्णु को और चार अन्य भगवान शिव को समर्पित हैं। पुरातत्व की दृष्टि से इन मंदिरों का बहुत महत्व है। कला प्रेमियों को भी यह मंदिर आकर्षित करते हैं। इनमें से सोमेश्‍वर मंदिर सबसे बड़ा है।

महावीर पार्क महावीर पार्क(बाङमेर्) एक खूबसूरत हरा-भरा पार्क है। यहां पर एक छोटा-सा संग्रहालय भी है जहां पत्थर से तराशी गई मूर्तियां प्रदर्शित की गई हैं।

मल्लीनाथ मेला राठौड़ राजवन्श के रावल रावल मल्लीनाथ के नाम पर मल्लीनाथ मेला राजस्थान के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक है। यह बाड़मेर जिले के तिलवाडा गांव में चैत्र बुदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। इस मेले में उच्च प्रजाति के गाय, ऊंटों, बकरी और घोडों की बिक्री के लिए लाया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि गुजरात और मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं।

मेवा नगर 12वीं शताब्दी का यह गांव किसी समय विरानीपुर के नाम से जाना जाता था। इस गांव में तीन जैन मंदिर हैं। इनमें से सबसे बड़ा मंदिर नाकोडा पार्श्‍वनाथ का समर्पित है। इसके अलावा एक विष्णु मंदिर भी है जो देखने लायक है। इस जगह का राठौड़ राजवन्श के इतिहास मे प्रमुख स्थान है । राठौड़ राजवन्श के रावल सलखा के पुत्र रावल मल्लीनाथ के वन्शज महेचा राठौड़ कहलाते थे, उन मल्लीनाथ के नाम पर ही इसका नाम महेवानगर पङा जो कि कालान्तर मे मेवा नगर हो गया।

वायु मार्ग: नजदीकी हवाई अड्डा जोधपुर है जो देश के बाकि हिस्सों से जुड़ा हुआ है। रेल मार्ग: बाड़मेर रेलवे के जरिए जोधपुर से जुड़ा है। सड़क मार्ग: बाड़मेर बसों के जरिए जैसलमेर और गुजरात से जुड़ा हुआ है।

राजकीय बहु तकनिक महाविधालय- यह बाड्मेर का बहुत सुन्दर महाविधालय हे !यहा तऍल रासायन शाखा चलायी जात हे!

मेले

तिलवाड़ा पशु मेला

लूनी नदी के तट पर स्थित लिवाङा गाँव मे यह मेला लगात है। यह जिले का प्रमुख पशु मेला है। यह मेला व्यावससायिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह गाँव तिलवाङा रेलवे स्टेशन से ३ किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह मेला जिला कृषि तथा पशुधन विभाग द्वारा आयोजित किया जाता है तथा यह प्रत्येक वर्ष बङ्ी चैत्र ११ से चैत्र सुदी ११ तक (मार्च-अप्रैल) में लगता है। हजारों की संख्या में लाग यहाँ इकट्ठे होते हैं तथा सन्यासी रावल के दर्शन हेतु आते है। हजारों जानवारो यहां खरीद-बिक्री के लिए लाए जाते हैं।

नकोरा पार्श्वनाथ

पंचपदरा तहसील के मेवानगर गाँव में एक मेला लगता है। यह स्थान बालोतरा शहर से १० किलो मीटर की दूरी पर है। यहाँ पर नकोरा पार्श्वनाथ का जैन मंदिर है, जिसके चारों ओर का वातावरण काफी सुंदर है। यहाँ प्रत्येक वर्ष बङ्ी पूस १० (दिसम्बर-जनवरी) को पार्श्वनाथ का जन्म उत्सव मनाने के लिए मेला लगता है। यहाँ पर तीन जैन मंदिर है, जो पार्श्वनाथ, शांतिनाथ तथा आदिनाथ को समर्पित हैं।, हर साल लगभग दस हजार की संख्या में लोग यहाँ इकट्ठे होते हैं, जिसमें ज्यादातर लोग जैन धर्म को मानने वाले होते हैं।

विरात्रा का मेला

चोहटन गाँव से लगभग १२ किलोमीटर की दूरी पर विरात्रा में मेला आयोजित किया जाता है। यहाँ साल में तीन बार चैत्र, भाद्रपद तथा माघ में वकालदेवी की पूजा का मेला लगता है। Vritra mata mandir tempel was established by King Vikarmaditya Vritra mata mandir aways 60 km from Barmer & connected with Ahamadabad Surat Jaipur Jodhpur

खेड़मेला

पचपद्रा तहसील के अन्तर्गत खे गाँव में हरेक पूर्णिमा पर मंदिर के निकट एक धार्मिक मेला लगता है। राधा अष्टमी भाद्रपद सुदी ८ और ९ (अगस्त-सितम्बर) को एक बङा मेला लगता है। यह गाँव बालोतरा से लगभग १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। खे प्राचीन काल में सभ्यता का मुख्य केन्द्र था।

जिले के अन्य मुख्य त्योहारों में होली, शीतला अष्टमी, गणगौर, रक्षा-बंधन, अक्षय-त्रितिया, दशहरा, दीपावली, ईद-उल-जुहा आदि है। महावरी जयंती तथा पयूशन जैन लोगों का महत्वपूर्ण पर्व है।

खरीदारी

खरीदारी के शौकीन लोगों के लिए बाड़मेर किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां रंगबिरंगी कढ़ाई में जड़े हुए शीशे सैलानियों को आकर्षित करते हैं। विशेषरूप से विदेशी सैलानी इन वस्तुओं को अवश्य खरीदते हैं। पारंपरिक रंगों और बुनाई से बने शॉल, कालीन, दरी और कंबल इस क्षेत्र की खासियत हैं। सदर बाजार के आसपास बनी छोटी-बड़ी दुकानों से इन चीजों की खरीदारी की जा सकती है।