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Rambhakt Maharaj Manikundal
References
editअयोध्यावासी वैश्यों के आदिपुरुष रामभक्त महाराजा मणिकुण्डल जी श्री मणिकुण्डल जी का जन्म अयोध्या मे महाराजा दशरथ के शासनकाल मे नगरसेठ श्री मणि कौशल के पुत्र रूप मे पौष पूर्णिमा को हुआ था। राम वनगमन के समय जब शोकाकुल अयोध्यावासी किंकर्तव्यविमूढ़ होगये थे तब बालक मणिकुण्डल ने कहा कि हमलोग संगठित होकर प्रभु श्री राम को वन जाने से रोकने का प्रयास करें। यदि प्रभु हमलोगों की प्रार्थना नहीं माने तो हम सबको भी वन के लिए प्रस्थान करना चाहिए। इसी निर्णय के आधार पर सभी अयोध्यावासी प्रभु श्री राम के साथ चल दिए। जब एक रात्रि राम सीता और लक्ष्मण चुपचाप चले गए तो सुबह सभी अयोध्यावासी हतप्रभ रह गए । कुछलोग अयोध्या वापस लौट आये परन्तु वैश्य समाज बहुत व्याकुल था। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है -- भयउ विकल बड़ वनिक समाजू। बिनु रघुवीर अवध नहि काजू। अतः मणिकुण्डल जी के आह्वान पर अयोध्यावासी वैश्यों ने निर्णय लिया कि-- जहाँ राम तहं अवध है, नही अवध बिनु राम। राम संग वन अवध है, अवध बचा क्या काम।। और ऐसा निर्णय कर राम जी को हुए पूरे देश मे ढूढने लगे। इस प्रकार पूरे देश में अयोध्यावासी वैश्य निवास करते हैं। सत्य और धर्म का अनुसरण करनेवाले मणिकुण्डल जी ने तमाम कष्ट के बावजूद रामभक्ति, राष्ट्रभक्ति, लोककल्याण,सत्य एवं धर्म का पथ नही छोडा़। कालान्तर मे वे महापुर के राजा बने। तत्पश्चात वे प्रभु श्री राम के दर्शन करने सपरिवार अयोध्या आये। ब्रह्मपुराण, वैश्याणाम गौरव:, भारतीय जाति कोश, वैश्य समुदाय का इतिहास, महामानव, प्रणवीर मणिकुण्डल, अयोध्यावासी वैश्यों का इतिहास इत्यादि पुस्तकों मे वर्णित मणिकुण्डल जी को अयोध्यावासी वैश्य अपने आदिपुरुष के रुप मे पूजते हैं। अयोध्या मे उनकी जन्मस्थली पर बने अयोध्यावासी वैश्य पंचायती रामजानकी मन्दिर तथा देशभर मे तमाम स्थानों पर उनकी मूर्तियां स्थापित हैं। प्रत्येक पौष पूर्णिमा पर अयोध्यावासी वैश्य मणिकुण्डल जयन्ती समारोहों का आयोजन कर उन्हें अपना नमन करते हैं।