Draft:पण्डित देवनारायण भारतीय

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पण्डित देवनारायण भारतीय
पण्डित देव नारायण भारतीय (1899-1968)
Born27 मई 1899
आगरा (सयुंक्त प्रान्त)

Died9 अगस्त 1968 (आयु 69)
Alma materराजा बलवंत सिंह राजपूत महाविद्यालय, आगरा (1915)

इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद (1917)



Occupation(s)क्रान्तिकारी, लेखक, राजनेता [1]

Notable work१. तेरह वर्ष की आयु में अंग्रेज़ शिक्षक को झापड़ मारा, ज़िलाबदर.

२. उत्तर भारत के सर्वप्रथम क्रान्तिकारी संगठन ‘मातृवेदी दल’ के अधिष्ठाता, कुशल संगठनकर्ता एवं संचालक.

३. अंग्रेजी सरकार द्वारा जब्त पुस्तक “अमेरिका को स्वाधीनता कैसे मिली” के लेखक.(1917)

४. बम विशेषज्ञ.

५. मैनपुरी षड्यन्त्र केस में दो हज़ार रुपया जिन्दा या मुर्दा का इनाम घोषित.

६. ७२ अंग्रेजों को प्राणदंड.

७. १७ वर्ष की नज़रबंदी होने के बावजूद दस षड्यन्त्र केस के नायक.



Political partyनेशनल कांग्रेस, सोशलिस्ट पार्टी

Spouse(s)स्वर्गीय प्रेमवती शर्मा भारतीय (मृत्यु सन् 1965)

Children(पुत्रियाँ) स्वर्गीय सरला देवी शर्मा, स्वर्गीय उर्मिला त्रिवेदी,

स्वर्गीय जीतेन्द्र कुमारी चतुर्वेदी, श्रीमती कुमुद मिश्रा (दामाद – श्री अनादि मिश्र)



पण्डित देवनारायण भारतीय (२७ मई १८९९ – ०९ अगस्त १९६८) उत्तर भारत के प्रथम क्रान्तिकारी, मातृवेदी दल के अधिष्ठाता, कुशल संगठनकर्ता एवं संयोजक, बम विशेषज्ञ, बहुभाषाविद, इतिहासकार, साहित्यकार, कवि, अनुवादक, समीक्षक एवं राजनेता थे.

परिचय

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पण्डित देवनारायण भारतीय का जन्म ज्येष्ठ मास, कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को विक्रम संवत् १९५६ (तद्नुसार २७ मई,१८९९ ईस्वी) को सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था. आपके पिता पण्डित श्यामलाल शर्मा पराधीन भारत में थाना हरीपर्वत में पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे, जो कि जनपद आगरा (सयुंक्त प्रान्त) के मोहल्ला मदिया कटरा में दो मंज़िला पैतृक कोठी में रहते थे. देवनारायण भारतीय जी के दो छोटे भाई (पण्डित रामनारायण शर्मा व पण्डित श्यामनारायण शर्मा) एवं दो बहन थीं. इनकी पत्नी स्वर्गीय प्रेमवती शर्मा भारतीय, बिजनौर (मुरादाबाद- सयुंक्त प्रान्त) की रहने वाली थीं. आपने आगरा में उत्तर भारत का प्रथम क्रान्तिकारी संगठन ‘मातृवेदी दल’ सन् १९१३ में गठित किया था. जिसके अतंर्गत आगरा आर्म्स एक्ट केस (१९१६), जोधपुर षड्यन्त्र केस (१९१७), ग्वालियर षड्यन्त्र केस (जनवरी, १९१८), मैनपुरी षड्यन्त्र केस (दिसंबर, १९१८), कलेक्टर विलोबी हत्याकाण्ड (१९२०), पीपल काण्ड (१९२१), काकोरी षड्यन्त्र केस (१९२५), शाहजहाँपुर षड्यन्त्र केस (१९३०), बालामऊ पुलिस चौकी काण्ड, इम्पीरियल बैंक काण्ड आदि षड्यन्त्र केस में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. मैनपुरी षड्यन्त्र केस के अंतर्गत देवनारायण भारतीय जी को सन् १९२० में ज़िला आगरा से ज़िलाबदर करते हुए, ज़िला शाहजहाँपुर में सन् १९३७ तक नज़रबंद कर दिया गया, जोकि क्रान्तिकारी आन्दोलन इतिहास में १७ साल दीर्घकालीन लम्बी नज़रबंदी है. नज़रबंद रहते हुए भी उन्होंने सभी क्रान्तिकारी घटनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम पर पहुँचाया.

उन्होंने युवाओं को जीवनपर्यंत शिविर लगा कर बम बनाने व चलाने का प्रशिक्षण ज़िला फर्रुखाबाद में दिया. इस शिविर से प्रशिक्षण प्राप्त कर कई युवाओं ने क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया. इस शिविर से निकलकर ही मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ के पूर्व संपादक पद्मश्री वचनेश त्रिपाठी ने बालामऊ काण्ड किया था. मुंशीराम आदित्य ने फर्रुखाबाद में इम्पीरियल बैंक काण्ड किया. इसी प्रकार इनके कई शिष्यों ने विभिन्न स्थानों पर क्रान्तिकारी कार्य किए.

देवनारायण भारतीय जी के पिता पुलिस विभाग में कार्यरत होने तथा चाचा राजस्थान के राजाओं के यहाँ सेनापति होने के कारण उन्हें क्रान्तिकारी कार्यों में विभिन्न प्रकार की सहायता भी प्राप्त होती थी. किन्तु मैनपुरी षड्यन्त्र केस (दिसंबर, १९१८) खुल जाने पर इनके पिता को नौकरी से निकाल दिया गया था. परिणामस्वरूप परिवार आर्थिक विपन्नता एवं संकट में घिर गया. लेकिन देवनारायण भारतीय जी परिवार के दुःख, अवसाद व विरोध के बावजूद भी क्रान्तिकारी कार्य से जीवनभर कभी पीछे नहीं हटे. देवनारायण भारतीय जी ने अपने जीवन में प्रमुख रूप से विजयसिंह पथिक (भूपसिंह), जगदम्बा प्रसाद ‘हितैषी’ मिश्र, पण्डित गेंदालाल दीक्षित, रामनारायण पाण्डेय, शिवकृष्ण, ठाकुर गंगासिंह आदि चौबीस क्रान्तिकारियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया. जबकि उनके ऊपर स्वयं दो हज़ार रुपया ज़िन्दा या मुर्दा पकड़ने पर इनाम घोषित था.

क्रान्तिकारी जीवन का प्रारम्भ (सन् १९१२)

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देवनारायण भारतीय जी जब लगभग तेरह वर्ष की अवस्था में थे, तब वह घर के बाहर अपने साथियों के साथ सड़क पर खेल रहे थे. इसी अन्तराल में अंग्रेज़ कलेक्टर की पत्नी बग्घी से गुजर रही थी. पुलिसकर्मी बग्घी के आगे-आगे “हटो...बचो...” कहते हुए चल रहे थे. इसी दौरान एक वृद्ध, दुर्बल व निर्धन व्यक्ति सड़क पार करने लगा. जिस पर कोचवान व सिपाहियों ने आक्रोशित होकर बूटों व राइफल की बटों से उसकी पिटाई शुरू कर दी. यह दृश्य देख कर देवनारायण भारतीय जी ने उस कोचवान को चाबुक सहित नीचे खींच लिया और सिपाहियों पर पत्थरों की बौछार कर दी. अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध यह उनका अपनी शैली में किया गया प्रथम विद्रोह था. इसके कुछ ही दिनों बाद अंग्रेजीं माध्यम के कॉलेज में प्रवेश के पहले ही दिन अंग्रेज़ प्रिंसिपल व कक्षा अध्यापक को पीटने के अपराध में ज़िला आगरा से एक वर्ष के लिए ज़िला बदर कर दिया गया था. घटना के तत्पश्चात ही देवनारायण भारतीय जी ने अपने नाम से शर्मा हटा कर सदैव के लिए भारतीय जोड़ लिया.

क्रान्तिकारी पण्डित अर्जुनलाल सेठी विद्यालय, जयपुर (सन् १९१२)

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देवनारायण भारतीय जी ने ज़िला बदर होने के बाद पण्डित अर्जुनलाल सेठी जी के विद्यालय में अपनी वास्तविक पहचान छुपाकर प्रवेश ले लिया था. एक भ्रष्टाचारी का वध करने पर सेठी जी के समक्ष देवनारायण भारतीय जी वास्तविक पहचान उजागर हो गई. इस पर सेठी जी ने प्रसन्न होकर देवनारायण भारतीय जी को बम प्रशिक्षण देने का निश्चय किया. उस समय सम्पूर्ण भारत के क्रांतिकारियों के अध्यक्ष रासबिहारी बोस दिल्ली में रहकर भारत के वायसराय को मारने की योजना में संलग्न थे. सेठी जी ने रासू-दा को संबोधित एक पत्र देवनारायण भारतीय जी हाथों भेजा. जिसमें यह आग्रह था कि पत्रवाहक युवा बम प्रशिक्षण के लिए अत्यंत उपयुक्त है. इस पर रासू-दा ने भी देवनारायण भारतीय जी को शशांक मोहन हाज़रा उर्फ़ अमृतलाल हाज़रा के पास बंगाल भेज दिया. जहाँ उन्होंने चार युवा साथियों के साथ बम का प्रशिक्षण प्राप्त किया. देवनारायण भारतीय जी ने अपने बुद्धि कौशल से अनुसन्धान कर बम निर्माण में इतनी कुशलता हासिल कर ली थी कि वे ‘बम विशेषज्ञ’ के नाम से क्रान्तिकारी इतिहास में प्रसिद्ध हो गए.

‘मातृवेदी दल’ का गठन

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देवनारायण भारतीय जी ने बंगाल से लौटने के बाद अपने साथियों के साथ एक मीटिंग आयोजित की. जिसमें यह सुनिश्चित किया गया कि देश को स्वतन्त्र कराने के लिए एक सशस्त्र संगठन बनाया जाए. इसी योजना के तहत दो क्रान्तिकारी संगठन बनाये गए. शिक्षित युवाओं के संगठन का नाम ‘मातृवेदी दल’ रखा गया. जिसके सर्वसम्मिति से मुखिया पण्डित देवनारायण भारतीय को बनाया गया. दूसरे संगठन का नाम ‘शिवाजी समिति’ रखा गया. जिसकी कमान पण्डित गेंदालाल दीक्षित के हाथों सौंपी गई. इस मीटिंग में प्रमुख रूप से बलिदानी पण्डित गेंदालाल दीक्षित, लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी, अध्यापक रामरतन, श्री कृष्णदत्त पालीवाल आदि उपस्थित थे. ग़ौरतलब है कि गेंदालाल जी ने डाकुओं में देशभक्ति की भावना जाग्रत कर उन्हें देशभक्त बना दिया था. इसी समूह का नाम ‘शिवाजी समिति’ था.

देवनारायण भारतीय जी ने गेंदालाल जी के जीविका उपार्जन के लिए अपने रिश्तेदार के विद्यालय में शिक्षक की नौकरी लगवा दी. औरैया के इसी डी.ए.वी विद्यालय में कालांतर में गेंदालाल जी हेडमास्टर हो गए. इस संगठन के अंतर्गत ज़ालिम जमीदारों, अंग्रेजों के पिट्ठुओं व देश के गद्दारों के यहाँ डाके डाले गए. इस धन का उपयोग शस्त्रों व बम सामिग्री को क्रय करने में किया जाता था. इस संगठन के अंतर्गत क्रान्तिकारी साहित्य लिखा गया.

मातृवेदी दल में देवनारायण व टोडी सिंह ने मिलकर शोभाराम आदि देश के गद्दारों को प्राणदंड दिया. देवनारायण भारतीय जी ने सन् १८५७ की क्रांति की भांति ब्रिटिश सैनिक छावनियों में भारतीय सैनिकों को अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध भड़काने का प्रयास भी किया, परन्तु दुर्भाग्यवश भांडा फोड़ होने से यह योजना विफल हो गई. परिणामस्वरूप क्रान्तिकारी साथियों को तित्तर-बितर होना पड़ा.


मातृवेदी दल की प्रतिज्ञा

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मातृवेदी दल के संविधान का निर्माण देवनारायण भारतीय जी ने किया था. दल में ख़ुफ़िया विभाग, सैनिक विभाग, शिल्पकारी विभाग आदि चार विभाग थे. पण्डित देवनारायण भारतीय जी ने “है देश को स्वाधीन करना जन्म मम संसार में...” प्रसिद्ध शौर्य कविता लिखी थी. इस कविता को देवनारायण भारतीय जी ने संगठन की प्रतिज्ञा बना दिया था. किसी भी नए सदस्य को जब क्रान्तिकारी सदस्य बनाया जाता था तो उसके एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में गीता जी लेकर इसी शौर्य कविता को गाते हुए प्रतिज्ञा लेनी होती थी. सदस्य बनाये जाने के दौरान अग्नि को साक्षी बनाया जाता था. जबतक किसी भी सदस्य को देवनारायण भारतीय जी सहमति नहीं प्रदान करते थे, उसे क्रान्तिकारी सदस्य नहीं माना जाता था.

पण्डित देवनारायण भारतीय की पहली जेल यात्रा (१९१६)

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वर्ष की पहली तिमाही में देवनारायण भारतीय जी अपने क्रान्तिकारी साथियों गेंदालाल दीक्षित जी, दम्मीलाल पाण्डेय जी आदि के साथ ग्वालियर राज्य शस्त्र खरीदने गए. जब ग्वालियर राज्य से शस्त्र व बम सामग्री ऊँट पर लेकर आगरा आ रहे थे. तब चुंगी चौकी पर दम्मीलाल पाण्डेय के साथ पकड़ लिए गये. जिसमें आगरा आर्म्स एक्ट केस के तहत मुकदमा चला. लेकिन देवनारायण भारतीय जी के पिताश्री पण्डित श्यामलाल शर्मा जी ने अपने प्रभाव का प्रयोग करते हुए सभी गवाहों के बयान बदलवा दिए. जिससे देवनारायण भारतीय जी व दम्मीलाल पाण्डेय जी को साक्ष्य के आभाव में न्यायालय ने निर्दोष मुक्त कर दिया. विदित रहे कि इस केस में श्री कृष्णदत्त पालीवाल जी के पिता जी ने पारिवारिक घनिष्ठता के कारण देवनारायण भारतीय जी के पक्ष में गवाही व ज़मानत दी थी.

जोधपुर षड्यन्त्र केस (सन् १९१७)

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पण्डित देवनारायण भारतीय जी ने राजस्थान में वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड के भ्रमण के दौरान जोधपुर में बम से उड़ाने की योजना बनाई. इस योजना के क्रियान्वयन के लिए उन्होंने अपने क्रान्तिकारी साथियों के साथ सुरंग खोद डाली. निर्धारित तिथि पर वायसराय को बम से उड़ाने का इंतजाम पुख्ता कर लिया गया था. लेकिन दुर्भाग्यवश इस योजना में विश्वासघात के कारण धरपकड़ शुरू हो गई. इसके अंतर्गत पूरे भारत में ख़ुफ़िया विभाग ने छापे मारे. ख़ुफ़िया एजेंसी को जब यह पता चला कि इस योजना के मुखिया देवनारायण भारतीय जी हैं तो उनके नाम वारंट जारी हो गया. परन्तु देवनारायण भारतीय जी अपने प्रमुख साथी प्रातः स्मरणीय श्री अनन्त विभूषित एक प्रख्यात तपस्वी संत (सन् १९४५ के पूर्व क्रान्तिकारी जीवन) के साथ भूमिगत हो गए. इस बार फिर देवनारायण भारतीय जी ने साक्ष्यों को प्रभावित कर केस को निष्प्रभावी कर दिया.

मैनपुरी षड्यन्त्र केस (सन् १९१८)

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मैनपुरी षड्यंत्र केस में फरार होने पर पण्डित देवनारायण भारतीय जी के खिलाफ ज़ारी वारंट


मातृवेदी दल सयुंक्त प्रान्त, बिहार, बंगाल, नेपाल, चीनजापान आदि तक फैला था. इस संगठन ने प्रत्येक जिले में मकान किराये पर लिए थे. जिसमें क्रान्तिकारी अस्त्र-शस्त्र, विस्फोटक सामिग्री, क्रान्तिकारी साहित्य एवं खर्च हिसाब की डायरी रखते थे. इसमें कुछ क्रान्तिकारी रहा भी करते थे. इस संगठन के क्रान्तिकारी साथियों ने ‘देशवासियों के नाम सन्देश’ नामक विद्रोहात्मक पर्चा (चर्चित पम्पलेट) लिखा, जिसे देवनारायण भारतीय जी के निर्देशानुसार अत्यधिक परिश्रम से छापा गया. जिनके ज़िलेवार बंडल देवनारायण भारतीय जी ने बनाए. उनके निर्देशानुसार ही प्रत्येक जनपद में इनका वितरण व प्रसार किया गया.

बलिदानी पण्डित गेंदालाल दीक्षित जी व लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी जी भिंड के जंगल में अपने साथियों के साथ ठहरे हुए थे. इनके एक साथी डाकू पंचम सिंह के मुखबरी करने के कारण फ्रेडी यंग से गोलीबारी हुई. जिसमें गेंदालाल जी एवं ब्रह्मचारी जी गोली से घायल हो गए. दल के ३५ सदस्य बलिदान हो गए. घायल गेंदालाल जी व ब्रह्मचारी जी को ग्वालियर किले में बंद कर दिया गया. इसकी सूचना देवनारायण भारतीय जी को अपने पिता से प्राप्त हुई. तब वह अपने साथियों के साथ ग्वालियर किले में गेंदालाल जी से मिलने पहुंचे. उनके बैरक के सामने पहुँचकर पत्र के आदान-प्रदान व इशारों से जेल से छुड़वाने की योजना बनाई. जेल से छुड़वाने के लिए देवनारायण भारतीय जी ने जेल के अधिकारियों को रिश्वत भी दी. किन्तु षड्यन्त्र का खुलासा होने पर धर-पकड़ शुरू हो गई.

‘अमेरिका को स्वाधीनता कैसे मिली’, नामक पुस्तक देवनारायण भारतीय जी ने सन् १९१७ में लिखी थी, जिसे सन् १९१८ में प्रकाशित किया गया. इस विस्फोटक पुस्तक के प्रकाशित होते ही अंग्रेजी सरकार ने इसको पढ़ने, बेचने व ख़रीदने के लिए प्रतिबंधित कर दिया था. यहाँ यह बताना उचित होगा कि कुछ वर्तमान इतिहासकारों ने गहन अध्यन व शोध न करने के कारण इस पुस्तक को क्रान्तिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ द्वारा लिखित व प्रकाशित लिखकर भ्रम उत्पन्न कर दिया है.

ज़िला मैनपुरी में मातृवेदी दल के एक प्रमुख क्रान्तिकारी साथी पर लीडरी का भूत सवार हुआ. उसने दलपत सिंह को अपने परिचित गाँव में डकैती डालने का अनावश्यक आदेश दिया. दलपत सिंह ने गाँव में अपनी पहचान उजागर होने के भय से डकैती डालने से इंकार कर दिया. इस पर उस प्रमुख क्रान्तिकारी ने दलपत सिंह पर रिवाल्वर तानते हुए डकैती न डालने पर मारने की धमकी दी. अपनी जान बचाने के मकसद से दलपत सिंह ने तुरंत ही ज़िला कलेक्टर के पास जाकर क्रान्तिकारी दल के सारे रहस्य प्रकट कर दिए. कलेक्टर के निर्देश पर तत्काल पुलिस महकमे ने पूरे जनपद पर छापा मार कर हथियारों के साथ सभी सदस्यों को पकड़ लिया था.

जिस समय मैनपुरी में क्रान्तिकारियों की धर-पकड़ हो रही थी उस समय मातृवेदी दल के अन्य सदस्य कांग्रेस अधिवेशन (१९१८) में सम्मिलित होने गए थे. इस अधिवेशन में पण्डित देवनारायण भारतीय, ठाकुर गंगासिंह, रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, पण्डित रामचरणलाल शर्मा, पण्डित शिवचरणलाल शर्मा, फ़तेह सिंह, गोविन्द सिंह आदि क्रान्तिकारी साथी उपस्थित थे. अधिवेशन में क्रान्तिकारी सदस्य सोमदेव शर्मा ने अपना बुक स्टाल भी लगाया था.

देवनारायण भारतीय जी के निर्देश पर सभी क्रान्तिकारी साथी अधिवेशन में आवाज़ लगा-लगा कर “सयुंक्त प्रान्त की जब्त किताब ले लो”, बेचने लगे. इस पर अंग्रेजी ख़ुफ़िया विभाग के कान सतर्क हो गए और उसने स्टाल से किताबें जब्त करते हुए शिवचरणलाल शर्मा व सोमदेव शर्मा को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद सभी क्रान्तिकारी भूमिगत हो गए.

कुछ समय बाद सोमदेव शर्मा व आगरा मेडिकल कॉलेज का छात्र रामनारायण पाण्डेय सरकारी गवाह हो गए. उन्होंने दल के सभी भेद खोल दिए. उनके बयान के आधार पर देश भर में गिरफ्तारियों का सिलसिला ज़ारी हो गया. परिणामस्वरूप गेंदालाल दीक्षित को मैनपुरी षड्यन्त्र केस का अपराधी ठहराने के कारण ग्वालियर किले से मैनपुरी लाया गया.

१. महामना मदनमोहन मालवीय जी से भेंट (सन १९१८)

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पण्डित देवनारायण भारतीय जी जब इलाहाबाद में पढ़ते थे तो उनके साथ मदनमोहन मालवीय जी के पुत्र भी पढ़ते थे. जिनके माध्यम से देवनारायण भारतीय जी ने मदनमोहन मालवीय जी से भेंट की और मैनपुरी षड्यन्त्र केस के सम्बन्ध में वकालत करने का आग्रह किया. भारतीय जी से मिलकर मालवीय जी अत्यंत गद्गद् हुए और गले लगा कर बोले - “बेटा, मैं तो वक़ालत छोड़ चुका हूँ और इस समय मैं काशी हिन्दू विश्विद्यालय की स्थापना व उत्कर्ष के लिए भरसक प्रयत्नशील हूँ. मैं विश्विद्यालय के लिए जो धन एकत्रित कर रहा हूँ, उसमें से एक थैली इस मुक़दमे के लिए भी देता हूँ. तुम ऐसा करो, कि मेरे घनिष्ठ मित्र देशबंधु चित्तरंजन दास के पास बंगाल चले जाओ. मैं उनके लिए पत्र लिख देता हूँ. वह इस मुक़दमे में सहर्ष पैरवी करने को तैयार हो जायेंगे.”

देशबंधु चित्तरंजन दास महान देशभक्त और क्रांतिकारी विचारों के व्यक्ति थे। वे स्वयं मैनपुरी आए और सयुंक्त प्रांत के प्रथम क्रान्तिकारी दल के मुखिया पण्डित देवनारायण भारतीय से मिले। भारतीय जी के बलिष्ठ शरीर, रोष भरी आँखें और ओजस्वी चेहरे को देखकर वे बहुत प्रभावित हुए और कहा कि हमारे बंगाल में तो क्रांतिकारी दल बहुत पुराने समय से कार्य कर रहे हैं. किन्तु संयुक्त प्रांत में तो मैं बिल्कुल नया संगठन देख रहा हूँ, जिससे मुझे बहुत प्रसन्नता है। फिर उन्होंने भारतीय जी से पूछा कि यह बताओ कि इस समय तुम कितनी शक्ति और सामर्थ्य रखते हो। भारतीय जी धैर्य और विश्वास के साथ तपाक से बोले, "यदि आवश्कता हो तो इसी रात इस जेल को उड़ा सकते हैं. मैनपुरी शहर को उड़ा सकते हैं।" यह सुनकर सी.आर. दास ने भारतीय जी की पीठ ठोंकी और कहा कि आज ऐसे ही साहसी और शूरवीरों की देश को आवश्यकता है। अब मैं तुमसे केवल एक बात चाहता हूँ कि तुम किसी प्रकार मुखविर रामनारायण को जेल से निकाल कर ले जाओ, तो फिर यह केस ही समाप्त हो जायेगा। भारतीय जी ने उन्हें ऐसा करने का विश्वास दिलाया।

३. गेंदालाल, शिवकृष्ण आदि को जेल से फ़रार करवाया

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जब गेंदालाल जी मैनपुरी जेल में बंद कर दिए गए तो देवनारायण जी कुंजड़े का भेष बना कर जेल के अन्दर प्रवेश कर गए. उन्होंने सब्जी की टोकरी में एक खोखला कद्दू रखा था. जिसमें उन्होंने जेल बैरक की सलाखें काटने के लिए आरी और पिस्तौल रखी हुई थी. उन्होंने गेंदालाल जी को यह देते हुए तिथि तय कर दी कि मैं फलां दिन जेल के बाहर घोड़े सहित खड़ा मिलूँगा. आपको रामनारायण के साथ जेल से फरार होना है. आप सरकारी गवाह होने का नाटक करिए ताकि रामनारायण पाण्डेय के साथ आप बंद कर दिए जाएँ. फिर आप उसके साथ फरार हो सकते हैं. गेंदालाल जी ने इसके उपरांत सरकारी गवाह होने का नाटक किया. कुछ दो-चार असली और फर्जी क्रान्तिकारी सदस्यों के नाम बताकर पुलिस के विश्वासपात्र हो गए. निर्धारित तिथि तक गेंदालाल जी ने बैरक की सलाखें काट लीं. गेंदालाल जी रामनारायण को पिस्तौल दिखा कर जेल से जबरदस्ती बाहर ले आए. देवनारायण जी ने उन दोनों को गेंदालाल जी के बड़े भाई के पास सुरक्षित कोटा पहुंचा दिया.

दूसरी तरफ़ पूर्व निर्धारित तिथि व योजना के अनुसार देवनारायण भारतीय जी ने क्रान्तिकारी साथी शिवकृष्ण को भी पुलिस हिरासत से फ़रार करवाया और उन्हें विभिन्न स्थानों पर सुरक्षित रखा.

इसके अतिरिक्त मैनपुरी षड्यन्त्र केस में फरार अन्य क्रांतिकारियों को भी अपने विश्वसनीय क्रान्तिकारी साथी के पास सुरक्षित छोड़ करके आए. इसके उपरांत वह अपने फ़रार क्रान्तिकारी साथियों की गिरफ़्तारी से चिंतामुक्त हो गए. तब उन्होंने इस केस की पैरवी के तरफ ध्यान दिया. मैनपुरी षड्यन्त्र केस का मुकद्मा न्यायालय में चलने के दौरान उन्होंने कई गवाहों को धमकाकर उनके बयान बदलवा दिए. मैनपुरी षड्यन्त्र केस की फाइल उनके पुस्तकालय में पढ़ने से यह ज्ञात होता है कि किस गवाह का उन्होंने क्या बयान बदलवाया. (यह टिप्पणियां उनकी हस्तलिखित हैं.) गौरतलब यह है कि मैनपुरी षड्यन्त्र केस का खुलासा होने के बाद उन्होंने उपर्युक्त सभी क्रान्तिकारी कार्य उस स्थिति में किए, जबकि उनके ऊपर स्वयं दो हज़ार रुपया जिन्दा या मुर्दा का इनाम घोषित था.

मैनपुरी षड्यन्त्र केस में देशबंधु सी. आर. दास एवं बैरिस्टर बी. सी. चटर्जी की कुशल पैरवी से ११ क्रान्तिकारियों के अपराध को देखते हुए मामूली सज़ा हुई जबकि उनके कारनामे को देखते हुए अंग्रेजी कानून के हिसाब से उनको फाँसी की सज़ा होनी चाहिए थी.

सैण्ड्स की शर्त मानने से इंकार

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डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस सैण्ड्स ने ही मैनपुरी षड्यन्त्र केस का खुलासा किया था. इस सम्बन्ध में दो बार काले पानी के सज़ा भोगने वाले महान क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल ने अपनी आत्मकथा ‘बंदी जीवन’[2] में लिखा है कि, मैनपुरी केस के कुछ फ़रार क्रान्तिकारियों के छुटकारे के लिए सैण्ड्स साहब ने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की. उन्होंने सबसे कहला दिया कि फरार क्रान्तिकारी आत्म-समर्पण कर दें. हम उन्हें छुड़वाने का प्रबन्ध कर देंगे. इस प्रकार से मैनपुरी के क़रीब-करीब सब कैदी कुछ शर्त पर छोड़ दिए गए. इस घोषणा पर मैनपुरी केस के प्रमुख मुखिया पण्डित देवनारायण भारतीय सैण्ड्स साहब से मिले. सैण्ड्स साहब ने भारतीय जी से यह लिखित में लेना चाहा कि वह भविष्य में किसी भी प्रकार से विद्रोहात्मक कार्य में भाग नहीं लेंगे. लेकिन उन्होंने सैण्ड्स की कोई शर्त ना कबूल करते हुए यह लिखने से स्पष्ट इंकार कर दिया. सैण्ड्स ने कई बार आग्रह किया कि “मेरी सलाह है कि आप हमारी शर्त को मान लें”. दोनों के विचारों में मतभेद होने पर अंततः देवनारायण भारतीय जी को नज़रबंद कर दिया गया.

सत्रह साल की नज़रबंदी

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सैण्ड्स से आखिर में यह तय हुआ कि सैण्ड्स साहब अपने ऊपर के अधिकारीयों से यह तय करेंगे कि पण्डित भारतीय जी को बिना शर्त छोड़ा जा सकता है या नहीं. लेकिन ऊपर के अधिकारी भारतीय जी को बिना किसी शर्त पर छोड़ने को राज़ी नहीं हुए. इसलिए, भारतीय जी से कहा गया कि वह चारों दिशाओं में से किसी भी एक दिशा को चुन लें. उस चयनित दिशा के निर्धारित कम से कम तीन सौ किलोमीटर दूर व अति पिछड़े गाँव में अपना निवास स्थान बनायेंगे. उस स्थान की यह विशेषता होना अनिवार्य है कि वहां आवागमन के साधन नगण्य हों. साथ ही उस क्षेत्र की आबादी में दूर-दूर तक अनपढ़ और गरीब लोगों की बसावट हो. ताकि वह किसी अनपढ़ को क्रान्ति का पाठ ना पढ़ा सकें. उन्हें ऐसे स्थान पर नज़रबंद किया जाएगा. उनके पहरे के लिए दो पुलिस वाले चौबीस घंटे तैनात रहेंगे. पुलिस कर्मी प्रतिदिन सम्बंधित थाने में उनके क्रियाकलाप की जानकारी देंगे. इस पर भारतीय जी ने तहसील जलालाबाद का अंदरूनी गाँव चुना. इसी के साथ देवनारायण जी की नज़रबंदी सन १९२० से शुरू हुई जो सन १९३७ पर समाप्त हुई. इस नज़रबंदी के दौरान ही उन्होंने पुलिस पहरे को धता बताते हुए राजा, जमींदार व सामंतों के द्वारा मजलूमों पर हो रहे जुल्म और आतंक को समाप्त किया. इसी दौरान सभी कांग्रेसी आन्दोलन में भाग लिया. इसी नज़रबंदी में युवाओं को सन १९२१ से १९४५ तक जिला फरुर्खाबाद में बम प्रशिक्षण देते रहे. नज़रबंदी में ही वह शाहजहाँपुर षड्यन्त्र केस के नायक भी रहे. नज़रबंदी में ही वह प्रथम बार सन १९३७ में विधानसभा सदस्य बनें.

महान क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से भेंट

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पण्डित देवनारायण भारतीय जी के साथ शचीन्द्रनाथ सान्याल जी के छोटे भाई पढ़ते थे. इस परिचय के आधार पर उन्होंने भारतीय जी से मिलकर क्रान्तिकारी आन्दोलन के विकास व दशा-दिशा को लेकर विस्तृत चर्चा की. दोनों लोगो ने अपने-अपने अनुभव साझा किए. देवनारायण भारतीय जी ने शचीन्द्रनाथ जी को यह अच्छी तरह समझाना चाहा कि अब आपको ‘प्रकाश्य आन्दोलन’ में कदम रखना चाहिए. वहीँ शचीन्द्रनाथ सान्याल जी ने भारतीय जी को ‘हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक संघ’ का सदस्य बनाते हुए ज़िला आगरा का लीडर नियुक्त किया. पर भारतीय जी ने शाहजहाँपुर में गरीबों पर हो रहे जुल्म को देखकर आगरा वापस ना जाने का निश्चय किया. सान्याल जी ने अपनी आत्मकथा ‘बंदी जीवन’[2] में देवनारायण भारतीय जी की प्रशंसा करते हुए कहा है कि, “वे बहुत गंभीर प्रकृति के समझदार व्यक्ति हैं. यदि देवनारायण भारतीय जी शाहजहांपुर को छोड़ कर आगरा में जाकर अपना केंद्र स्थापित करते तो उत्तर भारत का विप्लव आन्दोलन और भी गौरवमय रूप धारण करता”.

महान क्रान्तिकारी योगेशचंद्र चटर्जी से भेंट

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योगेशचंद्र चटर्जी ने बंगाल से उत्तर भारत में आकर क्रान्तिकारी संगठन खड़ा करने की प्रक्रिया शुरु की. इस सिलसिले में तत्कालीन भारत के सभी सक्रिय प्रमुख क्रान्तिकारियों से भेंट की. इसी क्रम में वह देवनारायण भारतीय जी से भी मिले. उनके अनुसार वह उस समय(सन १९२१)जिला शाहजहाँपुर के राजनैतिक क्षेत्र के अत्यंत महत्वपूर्ण व सम्मानित लीडर थे. काकोरी षड्यन्त्र केस के उपरांत योगेश दा ने देवनारायण भारतीय जी के साथ मिलकर जिला फरुर्खाबाद में बम प्रशिक्षण का शिविर लगाया था. योगेश दा के अनुसार शाहजहाँपुर षड्यन्त्र केस के सजायाफ्ता क्रान्तिकारी सुदामा प्रसाद पाण्डेय को छुडवाने में पण्डित देवनारायण भारतीय जी का पूरा हाथ था.[3] क्यूंकि वह उस समय उत्तर प्रदेश विधानसभा(१९३७) के माननीय सदस्य थे[1].

काकोरी षड्यन्त्र केस (सन १९२५)

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पण्डित देवनारायण भारतीय ने काकोरी षड्यन्त्र केस में प्रमुख रूप से भागेदारी की थी. लेकिन नज़रबंदी के दौरान पहरे में लगे दो पुलिस वालों की गवाही के कारण वह काकोरी षड्यन्त्र केस के आरोप से साफ़ बच गए. क्यूंकि पुलिस वालों को अपनी नौकरी की चिंता थी. यह बहुत ही कम लोगों को ज्ञात है कि काकोरी केस के सिलसिले में पुलिस जब अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की तलाश कर रही थी तो उनको महफूज़ करने के लिए देवनारायण भारतीय ने पण्डित अर्जुनलाल सेठी के पास रहने के लिए पत्र लिखकर भेजा था. वहां वह जबतक रहे सुरक्षित रहे. जब अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की तलाश में पुलिस ने शहर में छापा मारा था तो उन्हें स्वर्गीय पण्डित सीताराम मिश्र (देवनारायण भारतीय के कालांतर में समधी) ने सुरक्षित निकाल लिया था. इससे पूर्व मैनपुरी केस के दौरान भी जब बम बनाते हुए ठाकुर गंगा सिंह घायल हो गए थे तो बाहर खेल रहा एक छात्र (पण्डित सीताराम मिश्र ही) डॉक्टर को बुलाकर लाया था. सन १९२०-२१ के दौरान पण्डित देवनारायण भारतीय एक बहुत बड़े क्रान्तिकारी एक्शन के लिए तहसील तिलहर में आकर हिन्दू पट्टी मोहल्ला में किराए पर आकर रहे थे. उस क्रान्तिकारी एक्शन में उन्होंने तब तहसील तिलहर के अत्यंत सम्मानित व्यक्ति पण्डित भूपराम मिश्र (नायब तहसीलदार) व पण्डित हरप्रसाद मिश्र की पूरी सहायता प्राप्त की थी. बता दें कि पण्डित सीताराम मिश्र (जमींदारलम्बरदार) के पिता का नाम पण्डित भूपराम मिश्र था. लाहौर षड्यन्त्र केस के क्रान्तिकारी जयदेव कपूर के अनुसार पण्डित देवनारायण भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष थे.

यह लेख इसलिए प्रमाणिक है कि स्वर्गीय पण्डित देवनारायण भारतीय, लेखक के सगे नाना थे.

लेखक –

तनुज मिश्र ‘प्रांजल’

पुत्र श्री अनादि मिश्र

पौत्र स्वर्गीय पण्डित सीताराम मिश्र

संदर्भ

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  1. ^ a b "1957 Uttar Pradesh Legislative Assembly election".
  2. ^ a b बंदी जीवन. 1922. p. 224.
  3. ^ Chatterji, Jogesh Chandra (1967). In Search of Freedom. p. 443.